Karnataka की नई Work Policy: Flexibility या Burnout का नया Formula?

कर्नाटक सरकार के नए Labour Law Amendment,
को लेकर सोशल मीडिया से लेकर कर्मचारी यूनियनों तक गर्मागर्मी मची हुई है। दरअसल, Labour Department ने हाल ही में ये साफ किया है कि प्रस्तावित 10-hour workday (जिसमें 1 घंटे की break शामिल है) का मतलब ये नहीं कि साप्ताहिक काम के घंटे (weekly work limit) 48 से ज्यादा होंगे।
Karnataka की नई Work Policy:
Reality Check,
सरकार ने बताया कि जो 12-hour daily cap है, उसमें overtime भी शामिल है। यानी जो भी कर्मचारी overtime करता है, वो 12 घंटे से ज़्यादा काम नहीं कर पाएगा।
Government का मकसद क्या है?
इन amendments का मकसद है flexibility देना। मतलब, कोई कर्मचारी चाहे तो 5-6 दिन की जगह 4 दिन में ही अपना 48-hour week पूरा कर सकता है – यानी Compressed Work Week का ऑप्शन।
लेकिन विरोध क्यों हो रहा है?
IT/ITES Sectors में काम करने वाले कर्मचारी और यूनियन्स जैसे Karnataka State IT/ITES Employees Union (KITU) इस कदम का विरोध कर रहे हैं।
उनका कहना है:
➡️ इससे 12-hour shift को कानूनी मान्यता मिल जाएगी
➡️ बढ़े हुए घंटे से mental health पर असर पड़ेगा
➡️ Burnout और stress की समस्या और गहराएगी
KITU की मांग है कि सरकार ये सुनिश्चित करे कि flexibility का मतलब लंबे घंटे नहीं, बल्कि बेहतर विकल्प और employee consent होना चाहिए।
क्या ये ILO Norms के अनुसार है?
सरकार का दावा है कि ये प्रस्ताव International Labour Organization (ILO) के नियमों के अनुरूप है, जिसमें सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे काम का प्रावधान है।
Latest Post:
1. Tata Capital का ₹17,200 Cr IPO धमाका! SEBI से हरी झंडी, July में होगा Mega Listing Show
1 COMMENTS